नई पुस्तकें >> वक्त का मैं लिपिक वक्त का मैं लिपिकयश मालवीय
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एक करघा जिन्दगी का एक करघा गीत का बुनें दोनों साथ मिलकर हक दुशाला शीत का रोज सुबहें, रोज शामें, रात को घर लौटना पास, अपने पास आकर स्वयं को ही देखना कोई मसला ही नहीं है हार का या जीत का धुँध, कुहरा या उदासी और कातिक की हवा पूर्णिमा का दिन पुकारे, सिंधु-सतलज-बेतवा साँवली यमुना उतारे अक्स अपने मीत का लाल डोरे आँख में, गोधूलि कविता-सी लिखे काँपता मस्तूल, नीली शाम पर तनता दिखे माथ पर रोली समय की, एक चावल प्रीत का (इसी संग्रह से)
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